Top 3 Family Health Plans in India

Living in urban India has its advantages and disadvantages. While on one hand we have so many luxuries, services and amenities to make life simpler, on the other hand we are exposed to pollution, stress and other illness causing factors constantly.
As a result, health matters occupy a constant place on our list of priorities and we try to take every precaution to ensure the health, of ourselves and that of our family members, are kept under check. With the help of the family health plans, one can provide additional cover and security and rest assured that in case of an illness, the best treatment will can be sought.
There are many health plans in India that allow you to cover yourself as well as up to 4 members of your family. Take a look at some of the best plans listed below.

1. National Insurance's PARIVAR - Mediclaim for Family
Coming from the reliable public sector insurance company, National Insurance, PARIVAR is a comprehensive family health policy.
Features of the policy:
* Covers members of the family aged between 3 months and 60 years.
* Pre-existing illnesses such as high-blood pressure and high blood sugar will be covered
* Cost of hospital stay, including charges of doctors, nurses, pharmacy bills, etc covered
* Certain exclusions, such as pregnancy related complications, congenital disorders and drug-abuse charges are present.

Synopsys:
Overall, the PARIVAR Mediclaim policy from National Insurance is a good product. There are, however, a number of exclusions and conditions related to the policy and you must be aware of these before you purchase the policy.

2. The United India Insurance Family Medicare Policy
Another reliable family health plan, the United India Insurance Family Medicare Policy is a policy that covers you, your partner, your children and parents.
Features of the policy:
* Illnesses caused due to disease or accident covered under the policy
* If the family members are below 45 years of age, no medical test will be required. This is applicable for a sum assured of Rs. 10lacs or less.
* Covers hospitalization costs as well as post and pre-hospitalization expenses.
* Exclusions comprise of pre-existing conditions for the initial four years, non-medical expenses, accidents caused due to war, etc
* 8 Entry age is on the higher side (18 months)

Synopsys:
The United India Insurance Family Medicare Policy has some very unique features, but it has many exclusions and conditions as well. For instance, a family member below the age of 18 months cannot be included in this plan. Overall, the plan is effective and well-designed.

3. Oriental Insurance Happy Family Floater
The Oriental Insurance Happy Family Floater is another popular family health plan. It covers the hospitalization costs and other medical bills of the entire family.
Features of the policy:
* Larger bracket for family members - apart from spouse and children, parents and parents-in-law also covered.
* Hospitalization expenses including RMO and nurse fees.
* Add-on options available for accident plans, riders available for treatment of diseases such as cancer and stroke.
* Anyone in the family between the ages of 5-70 can be covered.

Synopsis:
The Oriental Insurance Happy Family Floater is among the best family health plans available. This is mainly because the policy is flexible and can be customized with the help of a number of riders and add-ons.
There are many different family health plans to choose from. Before buying such a plan, make sure you compare the policies and see which one suits you and your family the best. Buying the right kind of insurance policy for your family can keep them protected and provide them the best possible medical assistance if they ever need it. 

हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी की बारिकिया / Six FAQs on health insurance

हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेना तो जरूरी है ही लेकिन इससे ज्यादा जरूरी इसके नियम एवं शर्तों को समझना है ताकि भविष्य में परेशानियों का सामना न करना पड़े।

अस्पतालों में बीमारी के इलाज के लगातार बढ़ते खर्चों को ध्यान में रखते हुए हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेना वास्तव में जरूरी हो गया है। लेकिन जरूरी यह भी है कि आप अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को समझें। उसके नियम एवं शर्तों की जानकारी आपको भली-भांति होनी चाहिए ताकि भविष्य में किसी तरह की परेशानियों का सामना न करना पड़े।
हाल ही में मेरे एक मित्र अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को समय पर रिन्यू कराना भूल गए। यह पॉलिसी उन्होंने एक जानी-मानी सरकारी बीमा कंपनी से ली थी। पॉलिसी रिन्यू कराने की नियत तारीख से चार दिन बाद जब उन्होंने उस बीमा कंपनी की नजदीकी शाखा में अपनी पॉलिसी रिन्यू कराने गए तो उनसे कहा गया कि पॉलिसी लैप्स हो चुकी है और अब आपको नई पॉलिसी लेनी होगी।

नई पॉलिसी लेने का मतलब था कि पुरानी पॉलिसियों के सभी लाभों जैसे नो क्लेम बोनस, पहले से मौजूद बीमारियों की प्रतीक्षा अवधि आदि के लाभों से हाथ धोना। उन्होंने बीमा कंपनी के अधिकारी की बात मानते हुए नई पॉलिसी ले ली।

बाद में मालूम हुआ कि वह कोई अधिकारी नहीं बल्कि शाखा में बैठा हुए एक बीमा एजेंट था जो कमीशन पाने की खातिर मेरे मित्र को नई पॉलिसी लेने की सलाह दी। अधिकतर बीमा कंपनियां हेल्थ इंश्योरेंस को रिन्यू कराने के लिए 14-15 दिनों का ग्रेस पीरियड देती हैं।

पॉलिसी प्रीमियम के रिन्यू कराने की नियत तारीख से 14-15 दिन बाद तक अपने पुराने लाभों के साथ पॉलिसी रिन्यू करा सकते हैं लेकिन समय पर प्रीमियम न भरने का कारण आपको लिखित में देना होगा। इसलिए केवल हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेना ही जरूरी नहीं है बल्कि उसकी बारीकियों को समझना और उससे जुड़े नियमों की जानकारी भी जरूरी है। इसके लिए, हमें कोई भी हेल्थ पॉलिसी खरीदने से पहले पॉलिसी की कुछ मूल बातें और पॉलिसी शर्तों को पढऩे व समझने की जरूरत भर है।

फैमिली फ्लोटर:
फैमिली फ्लोटर एक ऐसी पॉलिसी है, जिसमें सम एश्योर्ड सभी पॉलिसीधारकों द्वारा साझा किया जाता है। उदाहरण के तौर पर- मान लीजिए कि सौरभ ने अपने, अपनी पत्नी अंजलि व बच्चों अनन्या और अतुल के लिए ३ लाख रुपये की एक फैमिली फ्लोटर पॉलिसी ली है। इसका मतलब है कि सौरभ का परिवार व्यक्तिगत व एक साथ ३ लाख रुपये तक के इंश्योरेंस का लाभ ले सकता है। लेकिन, इससे पहले कि आप कोई भी फ्लोटर पॉलिसी खरीदें, आपको यह समझना बेहद जरूरी होगा कि आपके परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए कितने कवर की आवश्यकता है।
अगर आपके परिवार के हर सदस्य को ३ लाख रुपये के कवरेज की जरूरत है तो बेहतर होगा कि आप फैमिली फ्लोटर पॉलिसी न लें। इसकी वजह है कि अगर परिवार के किसी भी एक सदस्य पर यह पूरा कवर व्यय हो जाता है तो बाकी सदस्यों के इंश्योरेंस कवर के लिए आपको एक नई पॉलिसी खरीदनी होगी। साथ ही, फैमिली फ्लोटर पॉलिसी में परिवार के सबसे बड़े सदस्य की उम्र, बच्चे व क्लेम हिस्ट्री सरीखे अन्य पहलू भी होते हैं। वहीं फ्लोटर पॉलिसी व एक व्यक्तिगत पॉलिसी के प्रीमियम के बीच भी ज्यादा बड़ा अंतर नहीं होता।

कैपिंग
कई इंश्योरेंस कंपनियां किसी खास बीमारी/रोग की स्थिति में अस्पताल के कमरे के किराए, डॉक्टर की फीस व अधिकांश भुगतान पर कैपिंग देती हैं। तय सीमा से अधिक खर्च होने पर, ये कैपिंग कैशलेस सुविधाएं देने से इनकार कर देती हैं। बेहतर होगा कि आप इन सभी कैपिंग के बारे में जांच-पड़ताल कर यह सुनिश्चित कर लें कि किसी प्रकार की इमरजेंसी की स्थिति में ये कैपिंग अस्पताल की आपकी प्राथमिकताओं से मिलती हैं या नहीं।

ग्रेस पीरियड
कई ग्राहक रियायती अवधि के रूप में मिलने वाले फायदे से अंजान होते हैं। प्रत्येक इंश्योरेंस पॉलिसी में 14-30 दिनों तक का रियायती समय होता है। जिसका मतलब है कि आप बिना किसी झंझट के अपनी पॉलिसी को रिन्यूअल की तारीख के 14-30 दिनों के अंदर रिन्यू करा सकते हैं। अपोलो म्यूनिख हेल्थ इंश्योरेंस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनकी कंपनी 30 दिनों का ग्रेस पीरियड देती है लेकिन ग्रेस पीरियड के दौरान किसी तरह के क्लेम का निपटान नहीं करती है।

ओरियंटल इंश्योरेंस के जनरल मैनेजर (हेल्थ) के. के. राव ने बताया कि अगर कोई पॉलिसीधारक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लैप्स होने के 15 दिनों के भीतर अपनी पॉलिसी रिन्यू कराता है तो उसे पिछली पॉलिसी का पूरा लाभ मिलेगा लेकिन इस अवधि के दौरान किसी भी तरह के क्लेम का निपटान नहीं किया जाता है।

फ्री-लुक अवधि
फ्री-लुक अवधि सभी सालाना पॉलिसियों पर मौजूद नहीं है। कुछ स्वास्थ्य और साधारण बीमा कंपनियां 15 दिनों का फ्री-लुक पीरियड पॉलिसीधारकों को देती हैं। अगर किसी कारणवश पॉलिसीधारक पॉलिसी से संतुष्ट नहीं है तो वह 15 दिनों के भीतर उसे वापस कर सकता है। मैक्स बुपा और अपोलो म्यूनिख के ऑप्टिमा रिस्टोर आदि पॉलिसियों के तहत 15 दिनों का फ्री-लुक पीरियड उपलब्ध है।

लोडिंग एवं सह-भुगतान:
अगर आपने पहले वर्ष में कोई क्लेम किया है तो कंपनियां आम तौर पर आपके रिन्यूअल प्रीमियम पर अतिरिक्त बोझ डालती हैं। खास तौर पर यह फैमिली फ्लोटर पॉलिसी का एक सबसे नकारात्मक पहलू हैं क्योंकि अगर परिवार का कोई एक सदस्य अस्पताल में भर्ती होता है और वह क्लेम करता है तो ऐसी स्थिति में सभी सदस्यों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।

मेडिकल जांच के दौरान उसमें किसी गड़बड़ी के आने पर भी लोडिंग लगाई जाती है। कई कंपनियों की पॉलिसी शर्तों में क्लेम किए जाने पर भी नो-लोड शर्त जारी रहती है। लेकिन कभी भी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने के लिए इसे कसौटी न बनाएं।

को-पेमेंट
को-पेमेंट वह शर्त है जिसमें आपको किसी खास इलाज के लिए हॉस्पिटलाइजेशन में आने वाले कुल खर्च के एक निश्चित प्रतिशत का भुगतान करना होता है। ये शर्त महज वरिष्ठ नागरिकों की पॉलिसियों पर ही लागू होती है। विभिन्न पॉलिसियों में सह-भुगतान 10-30 प्रतिशत होता है।

क्लेम की प्रक्रिया
कंपनी के ब्रोशर में यह साफ लिखा होता है कि कैशलेस सुविधा पाने के लिए आपको अस्पताल में भर्ती होने के 24 घंटों के अंदर कंपनी को सूचित करना होता है। किसी भी किस्म की देरी होने पर आप इसका फायदा लेने से चूक जाएंगे। क्लेम प्रक्रिया को समझना आपके लिए जितना जरूरी है, उतना ही आपके परिवार के लिए भी जरूरी है। अपने सभी कागजातों को किसी ऐसी जगह रखें, जहां आपके परिवार की आसानी से पहुंच हो।

हॉस्पिटल नेटवर्क
कंपनी का एक खास हॉस्पिटल नेटवर्क होता है, जिसमें कैशलेस सुविधाएं मौजूद होती हैं। अगर अस्पताल कंपनी या नियामक द्वारा निर्धारित किए गए दिशा-निर्देशों की श्रेणी में नहीं आता, तो बीमित क्लेम की अदायगी से वंचित रह जाएगा। अपने अस्पताल के चयन की भी जांच करें और देखें कि यह नेटवर्क का हिस्सा है या नहीं।

हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के चयन के समय इनमें से किसी एक नियम को कसौटी न बनाएं। पॉलिसी लेने से पहले पॉलिसी के सभी शब्दों को सावधानी से पढ़कर अपनी शंकाएं मिटा लें।

कैसे चुनें उपयुक्त मेडिक्लेम पॉलिसी- उपयुक्त मेडिक्लेम पॉलिसी का चयन करते समय विभिन्ना पॉलिसियों के तहत उपलब्ध फायदों एवं अपवादों जैसे प्रीमियम, क्लेम सैटेलमेंट प्रक्रिया, कैशलेस फेसिलिटी, हॉस्पिटल नेटवर्क टाई-अप, अधिकतम बीमाधन की उपलब्धता, बीमाधन को बढ़वाने की शर्त, पॉलिसी लेने की न्यूनतम व अधिकतम उम्र, पॉलिसी रिन्यू कराने की अधिकतम आयु, हॉस्पिटलाइजेशन, प्री-हॉस्पिटलाइजेशन एवं पोस्ट हॉस्पिटलाइजेशन बेनीफिट, रूम रेंट, को-पेमेंट चार्जेस, डे केयर, डॉमिन्साइल ट्रीटमेंट, पूर्व से मौजूद बीमारी का कवरेज, विभिन्ना बीमारियाँ जो कवर नहीं होंगी अथवा कुछ वर्षों बाद कवर होने वाली बीमारियाँ, नो-क्लेम बोनस, नो-क्लेम डिस्काउंट अथवा कोई ऐसे खर्च, जिनकी सीमा निर्धारित की गई हो आदि की जानकारी ले लेना चाहिए।

हेल्थ इंश्योरेंस: कायदे, फायदे और वायदे

लक्षात घ्या घराचा ‘एरिया’ (How is the area of a flat calculated?)

अप एरिया. कार्पेट एरिया म्हणजे घरात वापरायला मिळणारी जागा. म्हणजेच, ज्या जागेवर आपण कार्पेट अंथरू शकतो, त्या क्षेत्रफळाला कार्पेट एरिया म्हणतात. कार्पेट एरियात भिंती येत नाहीत.

बिल्टअप एरिया हा कार्पेट एरिया, भिंती, बाल्कनी किंवा गॅलरीचं क्षेत्रफळ एकत्र करून मोजला जातो. थोडक्यात, बिल्टअप एरिया म्हणजे एखादा फ्लॅट बांधण्यासाठी वापरण्यात आलेलं एकूण क्षेत्रफळ.

सुपर बिल्टअप एरियात सोसायटीतल्या सेवा-सुविधांसाठी वापरण्यात आलेल्या क्षेत्रफळाचा समावेश असतो. म्हणजे लिफ्ट, पार्किंग, लॉबी, जनरेटर रूम आदी सर्वांचाच समावेश यात होतो. सर्वसाधारणतः सुपर बिल्टअप एरिया हा बिल्टअप एरियाच्या २० टक्के एवढा असतो. या २० टक्के क्षेत्रफळालाच 'लोडिंग' म्हणतात. हे लोडिंग वेगवेगळ्या गृहप्रकल्पात किंवा सोसायट्यांमध्ये कमी-जास्त असू शकतं.

उदा. फ्लॅटचा बिल्टअप एरिया १००० चौ.फू. आणि सुपर बिल्टअप एरिया २००० चौ.फू. असेल, तर फ्लॅटचा एरिया १२०० चौ.फू. असल्याचं मानण्यात येतं. याला क्षेत्रफळाला 'सेलेबल एरिया'सुद्धा म्हटलं जातं. सेलेबल एरियात म्हणजे फ्लॅटच्या दरांमध्ये कार्पेट एरिया, बिल्टअप एरिया आणि सुपर बिल्टअप म्हणजे लोडिंग अशा सर्व खर्चांचा समावेश असतो. बिल्डर किंवा विकसक एखादा फ्लॅट विकत असतो, तेव्हा तो ग्राहकांकडून त्या फ्लॅटवरचं लोडिंगही वसूल करत असतो.

 
Flats are generally priced on the . However, the actual usable area of the flat may differ from the one you are charged for, or, the saleable area. The difference between the useable and is a result of the space included in the calculation. Some of the commonly used are:

CARPET AREA
This is the net usable area measured wall to wall, from the inner faces of walls. Simply put, it is the area in a flat which can be covered by carpeting. Some builders may add half the actual area of a terrace or dry areas while calculating the total carpet area. Others may treat these spaces like internal rooms and consider the entire area..


BUILT-UP AREA
This is the gross area of a flat. Besides the carpet area, it includes the space covered by the wall thickness and ducts. Generally, it is 10-15 per cent more than the carpet area of the flat.


SUPER BUILT-UP AREA
The current trend is to consider this as the saleable area. It is calculated by adding the markup for common spaces to the built-up area. These common spaces include the ones on the floor (lifts, staircases etc) and those in the building (entrance lobby, electrical room, pump room, flower beds etc). Basically, it includes all the common amenities that are built, but not directly charged to the customer. Parking space is excluded from this calculation and is typically charged for separately.

Ideally, the area of the common spaces should be calculated and added proportionately to each flat. However, this practice is rarely followed. As a thumb rule, most builders take 1.25 as the multiplying factor to calculate super built up area, multiplying the carpet area by 1.25. This would increase the total saleable area by approximately 25 per cent.
This percentage is also commonly known as ‘loading’. Most builders quote loading figures while calculating the saleable area. For example, say the carpet area of your flat is 500 square feet. The builder may add loading of about 30 per cent. This means that have to pay for 650 square feet, inspite of using only 500 square feet.

Since there is no written rule with regards to loading, on occasions, it could even be as high as 50-60 per cent. This implies that a 1,000 sq ft flat (super built up) could have a carpet area of barely 500-600 sq ft. As a result, home owners can find themselves in a dingy flat in spite of paying a high price. Builders usually justify such high loads on the basis of amenities provided. Thus, it would be higher for larger schemes, where more space is given to amenities and common areas as compared to small projects without much frills.

गृहकर्जाची निवड



- घराच्या किमतीच्या ८५ टक्क्यांपर्यंत गृहकर्ज मिळू शकतं. उर्वरित रक्कमही तुम्हाला जमा करावी लागते. याचा अर्थ असा की तुम्ही खरेदी करू इच्छिणाऱ्या घराची किंमत १५ ते २० लाख असेल तर तुम्हाला १६ लाखांपर्यंतचं गृहकर्ज घ्यावं लागेल. तसंच उर्वरित ४ लाख तुम्हाला जमा करावे लागतील.

- गृहकर्जात ईएमआय म्हणजे मासिक हप्ता हा खूप महत्त्वाचा मुद्दा आहे. तुमच्या घराची खरेदी ही दोन गोष्टींवर अवलंबून असते. एक म्हणजे तुम्ही किती गृहकर्ज घेता आणि त्याची परतफेड करताना तुम्ही किती रकमेचा ईएमआय भरू शकता. अविवाहित असाल तर तुमच्या निव्वळ उत्पन्नाच्या ६० ते ६५ टक्क्यांपेक्षा जास्त ईएमआय असू नये. विवाहित व्यक्तीसाठी तो संयुक्त निव्वळ उत्पन्नाच्या ३५ ते ४० टक्क्यांपेक्षा जास्त असता कामा नये. गृहकर्ज घेताना तुम्हाला खालील तीन टिप्सचा उपयोग करता येईल.

१. गृहकर्जाची रक्कम वाढवण्यासाठी स्वतःच्या आणि पत्नीच्या नावे संयुक्तरित्या गृहकर्ज घ्या. त्यात दोघांच्याही निव्वळ उत्पन्नामुळे अधिक रकमेचं गृहकर्ज मिळू शकेल.

२. कोणत्या बँकेकडून अथवा हाऊसिंग फायनान्स कंपनीकडून गृहकर्ज घ्यायचं हे ठरवताना केवळ मित्रांच्या सल्ल्यावर अवलंबून राहू नका. स्वतः त्यासंदर्भात माहिती घेऊन पूर्वतयारी करा आणि किमान दोन बँकांकडून गृहकर्ज मंजूर होईल, या दृष्टीने प्रयत्न करा. कारण एका बँकेने अचानकपणे तुम्हाला अपेक्षित असलेल्या रकमेचं कर्ज द्यायला असमर्थता दर्शवली तर दुसरा पर्याय तुमच्या हातात असला पाहिजे.

३. अशा गृहकर्जाची निवड करा, ज्यात सुरुवातीला कमी ईएमआय असेल आणि नंतरच्या वर्षात तो जास्त असेल. कारण भविष्यात तुमचं उत्पन्नही वाढते.

ब) कर्जाची परतफेड
गृहकर्जाची परतफेड करताना दोन पर्याय उपलब्ध असतात. पहिला पारंपरिक पद्धतीचा तर दुसरा आक्रमक पद्धतीचा. कोणती पद्धत निवडायची हे तुमची सुरुवातीची आर्थिक स्थिती कशी आहे आणि तुमची उद्दिष्ट्य काय आहेत, यावर अवलंबून असतं.

पारंपरिक पद्धत

फायदे - ईएमआयची रक्कम कमी असते.
पार्ट रिपेमेण्ट करण्यासाठी अतिरिक्त उत्पन्न वापरता येतं आणि त्यासाठी अतिरिक्त फीज लागत नाही.
तोटे - कर्जाची रक्कम लहान असते. त्यामुळे तुम्हाला घर घेताना तडजोड करावी लागते.
कर्जाची परतफेड करण्याची मुदत अधिक असते. त्यामुळे अनेक वर्षं ईएमआय भरताभरता कंटाळा येतो. शिवाय व्याजाची रक्कमही अधिक असते.
आक्रमक पद्धत
फायदे - कर्जाची रक्कम अधिक असते. त्यामुळे मोठं घर खरेदी करता येतं.
परतफेडीची मुदतही कमी असते. त्यामुळे जलद गतीने कर्जाची परतफेड होऊ शकते.
तोटे - ईएमआयची रक्कम अधिक असते. त्यामुळे त्याचा आर्थिक ताण येतो.
तुमची क्रेडिट हिस्ट्री चांगली नसेल तर बँका तुम्हाला मोठ्या रकमेचं कर्ज द्यायला तयार होत नाहीत. 

घरखरेदीतले कर

घर घेताना विविध स्वरूपाचे कर भरावे लागतात. त्या करांव्यतिरिक्तही इतर अनेक खर्च असतात. त्या सर्व खर्चांचा घर घेण्याआधीच विचार करायला हवा आणि त्यासाठी पैशांची तजवीजही.

घरांच्या सतत वाढत्या किमतींमुळे सामान्य माणसाला स्वतःचं घर घेणं खरोखरच कठीण बनलं आहे. असं असतानाही आर्थिक ओढाताण झेलत गृहकर्ज घेऊन अनेकजण मुहूर्तावर नवीन घराचं बुकिंग करतात. घर कुठे घ्यायचं, किती चौरस फुटांचं घ्यायचं, कुठल्या मजल्यावर घ्यायचं इत्यादी बाबींचा विचार सर्वप्रथम केला जातो. मग एखादी चांगली ऑफर शोधून मुहूर्ताच्या दिवशी घराचं बुकिंग केलं जातं. हे करताना मात्र बरेचदा या खरेदीवर लागणाऱ्या वेगवेगळ्या करांचं भान ठेवलं जात नाही. या दृष्टीने या करांचा एक आढावा.

मुद्रांक शुल्क ( Stamp Duty )

सध्या घरखरेदी करताना सरसकट ५ टक्के मुद्रांक शुल्क भरावं लागतं. त्यात मुंबई वगळता इतर ठिकाणी दिनांक १ एप्रिल २०१३ पासून १ टक्क्याची वाढ झाली आहे. म्हणजे आता सरसकट ६ टक्के मुद्रांक शुल्क आकारलं जाणार आहे. हे करारात नमूद केलेल्या किमतीवर लागते. तसंच किंमत रेडी रेकनरच्या किमतीपेक्षा कमी असल्यास रेडी रेकनरच्या किमतीवर लागते.

नोंदणी फी ( Registration Fee )

प्रचलित नियमानुसार नोंदणी फी ही १ टक्का किंवा जास्तीत जास्त ३०,००० एवढी आहे. मुद्रांक शुल्क आणि नोंदणी फीचा बोजा घर खरेदी करणाऱ्यावर असतो.

सेवा कर ( Service Tax )

१ जुलै २०१० पासून बांधकाम चालू असलेल्या घराची खरेदी करत असाल तर बांधकाम व्यावसायिक ३.०९ टक्के एवढा सेवाकर आकारू शकतो. काही बांधकाम व्यावसायिक ऑफर देताना सेवाकर वेगळा लागणार नाही, असं सांगतात. पण ही रक्कम इतर छुप्या पद्धतीने ते वसूल करतात, हे वेगळं सांगायला नको.

मूल्यवर्धित कर ( Value Added Tax )

१ एप्रिल २०१० पासून सरसकट १ टक्का मूल्यवर्धित कर आकारणी सुरू झाली आहे. त्याचा बोजा बिल्डरवर असून घर खरेदीदारांवर पडता कामा नये, असा उद्देश असला तरी अनेक घर खरेदीदारांचा अनुभव वेगळा आहे. याबाबत सर्वोच्च न्यायालयात केस दाखल असून तो निकाल लागेपर्यंत संभ्रम राहणार हे निश्चित.

वरील करांशिवाय कार्पेट एरिया, बिल्टअप एरिया, सुपर बिल्टअप एरिया यातला फरक, उंच इमारतीसाठी फ्लोअर राइज, पार्किंग, एकाच वेळी घेण्यात येणारा देखभाल आणि दुरुस्ती निधी तसंच पुढे कायम येणारा वार्षिक मालमत्ता कर याचा खर्चही घर खरेदी करणाऱ्यांना उचलावा लागतो.

हल्ली या सर्व करांचा भरणा केल्यावरही घराचा ताबा घेतला तरी आज भागत नाही. याचं कारण केवळ चार भिंती असून चालत नाही तर घर सजावटीसाठी मोठी किंमत मोजावी लागते. याशिवाय सोसायटी फॉर्मेशन खर्च, इलेक्ट्रिक मीटर भाडं वगैरे खर्चही रांगेत उभे असतात.

वरील करांचा आणि खर्चाचा हिशेब केला तर ५० लाख रुपये किमतीचं घर खरेदी करताना केवळ करांच्या रूपाने १० टक्के कर म्हणजे ५ लाख रुपये भरावे लागतात. याशिवाय वर सांगितलेले इतर खर्चही करावे लागतात. या सर्वांचा विचार खरेदीचा निर्णय घेण्याआधीच करून त्यासाठी पैशांची तजवीज करणं उत्तम. 

भाडेकरार करताना...

भाड्याने घर घेण्यापूर्वी भाडेकरार किती महिन्यांचा असतो , तो ठराविक मुदतीचाच का असतो , त्याचं किती वेळा नूतनीकरण करता येतं , अशा अनेक शंकांचा भुंगा डोक्यात फिरत असतो. अशाच काही प्रश्नांची ही उत्तरं...

प्रश्न - एखादा फ्लॅट भाड्याने घ्यायचा असल्यास ११ महिन्यांचा भाडेकरार करावा लागेल का ?

उत्तर - पूर्वी भाडेकराराची ( LEAVE & LICENSE AGREEMENT) मुदत ११ किंवा १२ महिन्यांच्या पटीत असायची. १ मार्च २००० पासून लागू झालेल्या ' महाराष्ट्र रेण्ट कण्ट्रोल अॅक्ट , १९९९ ' अंतर्गत भाडेकराराची मुदत ११ किंवा १२ महिन्यांच्या पटीत असावी , अशी कुठलीही अट घातली नव्हती. तसंच भाडेकरार विशिष्ट मुदतीचा असावा , असंही सांगण्यात आलेलं नव्हतं. तरीही भाडेकरार हा साधारणतः तीन वर्षांपेक्षा अधिक नसतो. परंतु यासंदर्भात ७ मे २००५ रोजी नवा कायदा अस्तित्वात आला. त्या कायद्यानुसार भाडेकराराची मुदत १२ महिन्यांच्या पटीत ५ वर्षांपर्यंत असू शकते. परंतु इंडियन रजिस्ट्रेशन अॅक्टच्या सेक्शन १(डी)नुसार कुठल्याही भाडेकराराची मुदत एक वर्ष किंवा त्यापेक्षा अधिक कालावधीची असेल तर त्या कराराची नोंदणी करणं बंधनकारक आहे. मुंबईसह अनेक ठिकाणी फ्लॅटचा भाडेकरार सर्वसाधारणतः ११ महिन्यांच्या कालावधीचाच असतो. त्यामागे दोन कारणं आहेत. एकतर ११ महिन्यांचा भाडेकरार केल्यावर नोंदणीशुल्क आणि मुद्रांक शुल्क लागत नाही आणि दुसरं म्हणजे बॉम्बे रेण्ट अॅक्टनुसार फ्लॅटचा भाडेकरार हा अचल किंवा स्थावर मालमत्तेचा व्यवहार समजला जात नाही. त्यामुळे भाडेकरूला भाडेकराराची मुदत पूर्ण होण्याआधी फ्लॅटबाहेर काढता येत नाही.

प्रश्न - भाडेकरार ११ महिन्यांचाच का असतो ? तो १२ महिन्यांचा का नसतो ?

उत्तर - घरमालकाला भाड्याने दिलेला फ्लॅट खाली करायचा असेल तर ११ महिन्यांचाच भाडेकरार करावा लागतो. एक वर्षाचा भाडेकरार केला आणि १२ महिने पूर्ण झाल्यानंतर फ्लॅट खाली करायचा असल्यास कायद्यानुसार भाडेकरूला सहा महिन्यांची नोटीस द्यावी लागते. पण ११ महिन्यांचा भाडेकरार असेल तर घर रिकामं करण्यासाठी भाडेकरूला सात दिवसांची नोटीस द्यावी लागते. ११ महिन्यांच्या भाडेकराराला रेण्ट कण्ट्रोल लॉ लागू होत नाही. १२ महिने पूर्ण झाल्यानंतरच हा कायदा लागू होतो. म्हणूनच फ्लॅटचे बहुतांश भाडेकरार ११ महिन्यांचे असतात.

प्रश्न - ११ महिन्यांची मुदत पूर्ण झाल्यावर फ्लॅटच्या भाडेकराराचं नूतनीकरण होऊ शकतं का ?

उत्तर - होय , ११ महिन्यांची मुदत पूर्ण झाल्यावर भाडेकराराचं नूतनीकरण होऊ शकतं. पण त्यासाठी भाडेकरू आणि घरमालक दोघांचीही संमती आवश्यक आहे.

प्रश्न - कायदेशीररित्या भाडेकराराचं नूतनीकरण जास्तीत जास्त किती वेळा होऊ शकतं ?

उत्तर - तसं पाहिलं तर भाडेकराराचं नूतनीकरण जास्तीत जास्त किती वेळा करता येतं , याविषयी कायद्यात कुठलीही तरतूद नाही. पण सर्वसाधारणतः भाडेकराराचं सलग तीनदा नूतनीकरण करण्यात येतं. पण काहीजण त्यापेक्षा जास्त वेळा भाडेकराराचं नूतनीकरण करतात. 

Home remedies for dry hair


Home remedies for dry hair



We can do a lot to prevent hair from becoming dry and brittle during winter season. Read on
It is a fact that hair becomes dry during the winter season. While we cannot escape the seasonal vagaries, we can do a lot to prevent our hair from becoming dry and brittle during the season. Here are a few tips to keep you in good stead.


 -It is best to avoid hair colouring and ironing during the season. However, if that is next to impossible, at least avoid shampooing during the season.
-Massage the scalp using hot oil. You can either use coconut oil or olive oil for best results
-Do not wash your hair in hot water as it can increase the dryness of the scalp, resulting in flaking and scaling of the skin of the scalp. Use lukewarm water instead and shampoo hair only once or twice a week.
-Use a shampoo and a separate hair conditioner. And leave the conditioner on the tip of the hair avoiding the roots for at least 10 to 15 minutes to moisturise the hair and prevent hair fall.
-The stench apart, beer is a great hair conditioner and so is coconut milk. For a protein packed conditioner, mix eggs and yogurt and rub it into your scalp. Leave on for five or 10 minutes, then wash it off completely.
-A haircut doesn't always have to lead to a new style. Trim off dead ends if your hair is too dry to rejuvenate your hair.

Expert Speak: Hair Repair Solutions for Damaged Hair

Tips from grandmothers and hair stylists:

Vinegar: The combination of acetic acid and water is a natural conditioner for your hair, but make sure you’re using apple vinegar.

Doctor’s opinion:
Due to the acidic value of vinegar it helps in restoring your hair's natural pH balance, and helps to remove excess oil from hair.

How to use:
Mix vinegar with a ratio of two parts water.  Apply the mixture for 15 minutes and then rinse it out. Use it once in a week.


Hair: What are the Main Causes of Dry Hair?

      
Damaged Hair: What are the Main Causes of Dry Hair?


Summer is the time when you face recurring hair problems. Dry hair is particularly a common issue. Styling dry hair can be frustrating. We got Dr. Nipun Jain, Senior Consultant in Dermatology from Sri Balaji Action Medical Institute to tell us the causes of dry hair.


Causes of dry hair #1

“Harsh environmental conditions like extreme cold, heat, wind etc,” says Dr Nipun is one of the main reasons for dry hair. This is mainly so for dry, harsh summers when our hair bears the brunt of the heat. Dry sunny days make your hair feel like straw and make us chop it off in most cases.

Causes of dry hair #2


Personal care products rich in chemicals that we use judiciously is one of the main reasons for dry hair, according Dr. Nipun. She says, “Use of harsh chemical-based products” causes dry hair.

Causes of dry hair #3
“Excessive blow drying or frequent use of heat treatments leading to loss of hydration from hair,” is another contributing factor. Heat from straightening irons and blow driers absorb the moisture from your hair.

Causes of dry hair #4

“Swimming or bathing in pools and spas with chlorinated water,” can cause dry hair too, says Dr. Nipun.

Causes of dry hair #5

Anorexia is also a leading cause of dry hair, which is obvious since your body is not getting sufficient vitamins, minerals and nutrients.

These causes of dry hair can be prevented by eating right, using a balance of hair care products and drinking water to keep your hair and skin hydrated this summer.